SHUBHANSHU SHUKLA :फाइटर पायलट से एस्ट्रोनॉट का सफर, SUCCESSFUL MISSION 2025

राकेश शर्मा के बारे में स्कूल की किताबों में पढ़ा उनसे प्रेरणा मिली और आज उस राह पर हूं यह मेरे लिए गर्व और जिम्मेदारी की बात है।  Biographyduniya.com

माइक्रोग्राविटी में शरीर के हाल

SHUBHANSHU SHUKLA

ग्रुप कैप्टन Shubhanshu Shukla : भारतीय वायु सेना IAF के ग्रुप कैप्टन शुभांशू शुक्ला अपने अंतरिक्ष यात्रा के बताएं अनुभव।
Shubhanshu Shukla ने बताया कि अंतरिक्ष में रहने का अनुभव बिल्कुल ही नया होता है। Shubhanshu shukla कहते हैं कि इंसान का शरीर हमेशा गुरुत्वाकर्षण के माहौल में जिया होता है और अंतरिक्ष में जीरो गुरुत्वाकर्षण की स्थिति होती है इसमें खुद के शरीर को ढालना बहुत ही मुश्किल होता है। शरीर को जीरो गुरुत्वाकर्षण के लिए बहुत बदलाव करने पड़ते हैं। शरीर को इसके अलावा कुछ भी पता नहीं होता।
अंतरिक्ष में ग्रेविटी ना होने के कारण खून को सर तक पहुंचाने के लिए ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती और दिन की धड़कनें भी धीमी हो जाती है।
शरीर को खुद से तो तब लड़ना पड़ता है जब जीरो ग्रेविटी में से हम 100% ग्रेविटी में उतरते हैं।
जब हम धरती पर वापस आते हैं तब ग्रेविटी में ढलना थोड़ा मुश्किल हो जाता है क्योंकि अंतरिक्ष में ज्यादा दिन रहने के बाद शरीर को उसकी आदत हो जाती है और धरती पर आने के बाद ऐसा लगता है जैसे कि हम पहली बार चलना सीख रहे हैं।

शुभांशु बने भारत के दूसरे अंतरिक्ष यात्री

1984 में अंतरिक्ष में राकेश शर्मा गए थे जो के भारत के सबसे पहले अंतरिक्ष यात्री थे।
दूसरे अंतरिक्ष यात्री शुभ Shubhanshu Shukla 2025 में ऐक्सीओम–4 के मिशन ISS पर थे। यह ऐतिहासिक मिशन, पोलैंड, भारत, हंगरी और अमेरिका के चार अंतरिक्ष यात्रियों को 18 दिन के लिए लेकर गए थे।

7 सबसे महत्वपूर्ण प्रयोग

Shubhanshu Shukla ने स्पेस में 60 प्रयोग किया उनमें से 7 सबसे महत्वपूर्ण है आईए देखते हैं 7 प्रयोग कौन से हैं।

Experiment 1

सबसे पहला प्रयोग का नाम है मायोजेनेसिस
मायोजेनेसिस मतलब अंतरिक्ष में जाने के बाद जो मांसपेशियों पर असर होने लगता है उसके बारे में रिसर्च।


स्पेस में जाने के बाद जीरो माइक्रो ग्रेविटी में इंसान की मांसपेशियां घटने लगती है और कमजोर पड़ने लगती है।
जिसका परिणाम बीमारियों का आगे अध्ययन करेगा और इस पर इलाज करने के लिए यह प्रयोग काम आएगा।

अगर इन फ्यूचर हम स्पेस में रहने भी लगे तो उसके वातावरण में ढलने के लिए यह रिसर्च चल रहे हैं यह रिसर्च भविष्य में बुजुर्गों के लिए काफी फायदेमंद होंगे।

Experimemt 2


Shubhanshu Shukla ने स्पेस में जो दूसरा प्रयोग किया है वह बिजो को उगाने पर किया है ।
अंतरिक्ष यात्रा के दौरान माइक्रो ग्रेविटी में उन्होंने कुछ बीज का रूपन किया था यह देखने के लिए के अंतरिक्ष में भी फसल उगाई जा सकती है।
भविष्य में होने वाले अंतरिक्ष यात्राओं के लिए फसल उगाना यह सबसे बड़ी चुनौती होगी इसलिए आगे कोई दिक्कत ना आए , इसलिए उन्होंने अंतरिक्ष में फसल उगाने का प्रयोग किया और यह सफल भी रहा है।
Shubhanshu Shukla ने सिक्स तरह की फसलों का बी रूपन किया है।

Experiment 3

शुभांशु शुक्ला ने माइक्रो ग्रेविटी के अध्ययन से जुड़ा एक एक पेशी शैवाल होता है जिसे माइक्रो अलगे स्पेस स्टेशन में लेकर गए यह मीठे पानी और समुद्री वातावरण दोनों में ही पाए जाते हैं। अब यह एक पेशी शैवाल का अंतरिक्ष में क्या काम हो सकता है।


यह एक पेशी शैवाल भविष्य के लंबे मिशनों में अंतरिक्ष यात्रियों के पोशन में अपनी उपस्थिति दिखा सकता है।
यह शैवाल कार्बन को अवशेषित करके ऑक्सीजन तैयार करते हैं इसको माइक्रो ग्रेविटी में कार्बन डाइऑक्साइड रीसाइक्लिंग करके ऑक्सीजन तैयार करने में इसका बहुत बड़ा योगदान है।

Experiment 4

यह प्रयोग बहुत ही दिलचस्प प्रकार का है।
60 करोड़ साल से धरती पर जी रहे 8 पर वाले जीव को Shubhanshu Shukla अपने साथ अंतरिक्ष में ले गए थे। यह जीव डायनासोर से भी 40 करोड़ साल पुराने है इन जीवन ने धरती पर आने वाले सबसे बड़े संकट को कामयाबी से जला है यह सालों तक बिना खाए पिए जी सकते हैं कितनी भी गर्मी में रह सकते हैं ।


यह जो टारडिग्रेड्स नाम का जीव बहुत ही कठोर और बहुत ही सहनशील जो माना गया है यह जीव रेडिएशन और वैक्यूम में भी जिंदा रह सकते हैं इसके लिए यह अपने मेटाबॉलिक फंक्शन को बिल्कुल रोक सकते हैं ।
इस जिओ का अध्ययन करने के लिए इस स्पेस में लेकर गए यह देखने के लिए की यह जो स्पेस में भी धरती की तरह अपने कैपेसिटी दिखा सकता है या नहीं।
यह भी जानने के लिए लेकर गए थे कि अंतरिक्ष की परिस्थितियों में कैसे प्रजनन किया जा सकता है इसका सरल सरल शोध का मकसद यह था कि हर एक कंडीशन में अंतरिक्ष में कैसे जीवन बना रह सकता है इस पर यह काफी काम आएगा।Shubhanshu Shukla

Experiment 5

माइक्रो ग्रेविटी में मूंग और मेथी के भी उगाए गए हैं इस दौरान माइक्रोग ग्रेविटी में बीज का अंकुरण हो सकता है कि नहीं यह देखने के लिए शुभांशु शुक्ला ने अंतरिक्ष में बीजों के ज पौधे को भी धरती पर कई चक्कर में हो गया जाएगा यह कहा है। इसके अलावा मूंग और मेथी के बीजों में पोषण क्षमता जीरो ग्रेविटी और 100% ग्रेविटी में कैसी है यह देखने के लिए प्रयोग किया गया है।

Experiment 6

ब्लू – ग्रीन एल्गी के दो किस्म पर शोध जुड़ा रहा जो की 6th प्रयोग है।
यह बैक्टीरिया साइनोबैक्टीरिया है जो की ऑक्सीजन इस्तेमाल करके अपना खाना बनाता है यह फोटोसिंथेसिस में सक्षम है।
इसे यह देखने के लिए लेकर गए थे कि माइक्रो ग्रेविटी का साइन ऑफ बैक्टीरिया पर कैसा असर पड़ता है।
उसके बायोकेमिकल प्रक्रिया में किस तरह बदल होता है यह देखने के लिए उसे अंतरिक्ष में लेकर गए भविष्य में लंबे समय अंतरिक्ष मिशनों में इंसान जीने लाइफ परिस्थितियों में भी प्रयोग कर सकता है।

Experiment 7

माइक्रो ग्रेविटी में कंप्यूटर स्क्रीन का आंखों पर कैसा असर पड़ता है । आंखों की मूवमेंट और किसी चीज पर कॉनसंट्रेट करने की क्षमता का अध्ययन किया गया है।
यह इसलिए देखा गया है कि अंतरिक्ष में सबसे ज्यादा कंप्यूटर की स्क्रीन का ज्यादा इस्तेमाल होता है और उसे इस्तेमाल करने के लिए जो अंदर के स्ट्रेस है वह भी बढ़ते हैं इन सब का भी अध्ययन किया गया है।

Shubhanshu Shukla

SHUBHANSHU SHUKLA

शुभांशु शुक्ला सिर्फ अन्तरिक्ष यात्री ही नही बल्कि फाइटर प्लेन के चालक और वायु सेवा के ग्रुप कैप्टन भी है।

SHUBHANSHU SHUKLA BIRTH10th October 1985 लखनऊ
School Montesory School
AND
National defence academy (NDA),
IISC,
ENGINEERINGAEROSPACE ENGINEERING in M.Tech from Bengaluru .
2006 in Indian Airforce experience 2000 hours.
SHUBHANSHU SHUKLA

2006 में इंडियन एयर फोर्स में कमीशन मिलने के बाद शिवांशु शुक्ला ने तेजी से प्रगति करते हुए 2024 तक ग्रुप कैप्टन का पद संभाले रखा इतना ही नहीं 2000 से अधिक घंटे की उड़ान का अनुभव उनके पास है।
जिन प्रमुख विमान को उड़ाया उसमें

डोर्नियर – 228
सुखोई su–30 MKI
जौगवार
मिग 29

मिशन

14 से 21 दिनों तक इस पर यह सब लोग रहेंगे और 60 से अधिक वैज्ञानिक 31 देश के सहयोग से यह मिशन पार करेंगे।
Shubhanshu Shukla ने बताया कि यह सिर्फ मेरी अकेले की यात्रा नहीं है तो 1.4 अब भारतीयों की यात्रा है।
Ax– मिशन जो भी अनुभव मिलेंगे वह अंतरिक्ष अभियान में बहुत उपयोगी साबित होंगे जिसकी लॉन्चिंग 2027 तक संभावित है।

Mishion With

1) शुभांशु शुक्ला के साथ और भी कई लोग गए थे उसमें से कमांडर – पेगी विटसन (अमेरिका)
२) क्रू मेंबर– swavosh ujjranski (पौलेंड), टीबोर कापू (हंगेरी)।
३)मिशन पायलट – Shubhanshu Shukla (भारत)

SHUBHANSHU SHUKLA

25 जून 2025 को लॉन्च किया गया और डॉकिंग 26 टाइम 4.30 pm।
41 सालों के बाद अंतरिक्ष में पहुंचे शुभांशु शुक्ला जो की शानदार सफर है ।
शुक्ला Axiom –4 मिशन के दौरान अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन ISS पर गए ।
उन्होंने SPACE– X के फाल्कन –9 रॉकेट से भारतीय समय अनुसार दोपहर 12:01 पर canada स्पेस सेंटर से उड़ान भरी ।
इस मिशन ने लगभग 28 घंटे की यात्रा तय करने के बाद ड्रैगन यह गुरुवार 26 जून को शाम 4:30 इंटरनेशनल स्पेस सेंटर से डॉक करेगा।

एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल करते हुए भारत ने अंतरिक्ष विज्ञान में अपना इतिहास रचकर एक बार फिर से खुद को सिद्ध कर दिया है।
Shubhanshu Shukla के साथ उनके अन्य तीन अंतरिक्ष यात्री फाल्कन –9 राकेट Axiom –4 मिशन के तहत सफलतापूर्वक लॉन्च हो चुके हैं यह लॉन्च अमेरिका के फ्लोरिडा स्थित कनाडा स्पेस सेंटर से किया गया है।
फाल्कन 9 में रॉकेट के ऊपरी हिस्से में स्पेस एक्स का ड्रैगन कैप्सूल मौजूद है।

RAKESH SHARMA

SHUBHANSHU SHUKLA

41 साल पहले विंग कमांडर राकेश शर्मा अंतरिक्ष में गए थे यह मिशन सिर्फ भारत के लिए गर्व की नहीं बल्कि भविष्य की अंतरिक्ष योजना है।

FUTURE योजना को मजबूत करने के लिए भी था और राकेश शर्मा 11 अप्रैल को वापस भी आए थे। यह बहुत सक्सेसफुल मिशन रहा है 41 सालों के बाद अंतरिक्ष में और एक भारतीय अंतरिक्ष और एक बार उड़ान भरने जा रहा है भविष्य के बारे में अंतरिक्ष में खोज करने की यह उनकी नीति सफल भी हो पाई है।

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अमेरिका के कैलिफोर्निया तट पर मंगलवार को 15 जुलाई 2025 दोपहर 3:00 बजे के बाद प्लेसडाउन हुवा।
Shubhanshu Shukla और उनके चार साथी करीब एक हफ्ते तक रहेंगे रिहिबिलिस्टेशन मैं रहेंगे ताकि गुरुत्वाकर्षण वाली जिंदगी में ढल सके।
शुभांशु का परिवार और उसे दिन का इंतजार कर रहा है जब वह लखनऊ लौटेंगे।

कैसा था अनुभव ?

शुभांशु शुक्ला ने कहा सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा।
Shubhanshu Shukla का कहना है की अंतरिक्ष से जो सबसे खूबसूरत नजर आता है वह है भारत का नक्शा यूं ही नहीं कहा जाता है कि सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा अंतरिक्ष से भी यह नजारा आंखों को सुकून देने वाला था।

FAQ

शुभांशु शुक्ला कितने साल के हैं ?

शुभांशु शुक्ला 39 साल के है। 10 OCT 1985.

शुभांशु शुक्ला की पत्नी कौन है ?

शुक्ला का विवाह कामना मिश्रा से हुआ है, जो पेशे से दंत चिकित्सक हैं और स्कूल में शुभांशु की सहपाठी थीं।

शुभांशु शुक्ला के पिताजी क्या करते हैं ?

शुभांशु शुक्ला के पिता का नाम शंभू दयाल शुक्ला है। वह एक सेवानिवृत्त सरकारी अधिकारी हैं।

About Personal Life

  • लखनऊ के अलीगंज से सफर शुरू हुआ था जो आज एस्ट्रोनॉट के नाम से जाना जाता है।
  • एक मिडिल क्लास फैमिली से बिलॉन्ग करने वाले शुभांशु शुक्ला अपने परिवार के सबसे छोटे बेटे हैं।
  • शुभांशु शुक्ला के पिताजी शंभू दयाल शुक्ला एक सेवानिवृत सरकारी अधिकारी है और उनकी माताजी आशा शुक्ला एक गृहिणी है।
  • शुभांशु शुक्ला एक मध्यम वर्गीय परिवार से होने के बावजूद भी सपना इतना बड़ा देख के आज दुनिया में ऐसा कोई भी नहीं है जो शुभांशु शुक्ला को नहीं जानता।
  • एक मिडिल क्लास फैमिली के बेटे ने जमीन पर रहकर आसमान का सपना देखा और उन्होंने वह सपना हकीकत में बदल के रख दिया।

Shubhanshu Shukla Networth

  • शुभांशु शुक्ला की नेटवर्थ लगभग 40 to 64 मिलियन तक का अनुमान लगाया जाता है।
  • क्योंकि मध्यमवर्गी शुभांशु शुक्ला की कहानी संघर्ष समर्पण और उनकी मेहनत पर ढली पली है।
  • शुभांशु शुक्ला 2006 में भारतीय वायु सेवा में कमीशन प्राप्त करने के बाद उन्होंने सैन्य करियर की शुरुआत की।
  • 2000 से अधिक उड़ान के घंटे का एक्सपीरियंस है।
  • UPSC से NDA पास की है।

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